"देवी गजवाइणी हर मनोँकामना पुर्ण करने के साथ ही हर दुख हरण कर लेती है।देखने मेँ चंद्रमा के समान कांतिवाली, लाल वस्त्र और अभूषण धारणी स्थूल व उन्नत स्तनोँवाली है।इनका पुजा तामासिक रुप मेँ किया जाता है।तामासिक होने पर भी ए उग्र रुप मेँ दर्शन नही देती है।देवी अपने भक्त को सुंदर और मनोहर रुप मेँ ही दर्शन देती है।इनका साधना वही कर साकता है जो मछली का भोग करता हो,क्यो की इस देवी का मुख्य भोग मछली है।साधना भी मछली भक्षण कर के किया जाता है। साधना गुरुवार के दिन से ही करना है।इस देवी का पुजा का दिन भी गुरुवार है।रात को धूप दीप दे कर,अपनी आसन मेँ विराजमान हो जाए।भोग मेँ एक मछली अपने मुख के सामने ,एक पत्ता मेँ रख दे और खुद भी एक मछली का भक्षण कर ले।प्रतिदिन 31 माला जाप करना है।21 दिन तक ए साधना करना है।ध्यान रहे ए देवी सात दिन मेँ भी दर्शन दे साकती है,जब भी देवी आए तो आसन दे और फुलोँ से स्वागत करेँ फिर रखी हुई मछली देवी को दे।मछली का भेँट लेने का बाद जब वह वारदान माँगने को कहे तो कुछ भी माँग ले।देवी खुश होने पर इस दुनिया का हर असंभव को भी संभव कर देती है ॥ मंत्र-ॐ हौँ लूं हूं चामुणडायै गजवाइणी हुं ह्रीँ ठः ठः।।
"देवी गजवाइणी हर मनोँकामना पुर्ण करने के साथ ही हर दुख हरण कर लेती है।देखने मेँ चंद्रमा के समान कांतिवाली, लाल वस्त्र और अभूषण धारणी स्थूल व उन्नत स्तनोँवाली है।इनका पुजा तामासिक रुप मेँ किया जाता है।तामासिक होने पर भी ए उग्र रुप मेँ दर्शन नही देती है।देवी अपने भक्त को सुंदर और मनोहर रुप मेँ ही दर्शन देती है।इनका साधना वही कर साकता है जो मछली का भोग करता हो,क्यो की इस देवी का मुख्य भोग मछली है।साधना भी मछली भक्षण कर के किया जाता है। साधना गुरुवार के दिन से ही करना है।इस देवी का पुजा का दिन भी गुरुवार है।रात को धूप दीप दे कर,अपनी आसन मेँ विराजमान हो जाए।भोग मेँ एक मछली अपने मुख के सामने ,एक पत्ता मेँ रख दे और खुद भी एक मछली का भक्षण कर ले।प्रतिदिन 31 माला जाप करना है।21 दिन तक ए साधना करना है।ध्यान रहे ए देवी सात दिन मेँ भी दर्शन दे साकती है,जब भी देवी आए तो आसन दे और फुलोँ से स्वागत करेँ फिर रखी हुई मछली देवी को दे।मछली का भेँट लेने का बाद जब वह वारदान माँगने को कहे तो कुछ भी माँग ले।देवी खुश होने पर इस दुनिया का हर असंभव को भी संभव कर देती है ॥ मंत्र-ॐ हौँ लूं हूं चामुणडायै गजवाइणी हुं ह्रीँ ठः ठः।।
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